Friday, September 13, 2024

बारिश का दिन और बचपन की यादें: कागज़ की कश्ती

बारिश का मौसम आते ही दिल एक अजीब सी खुशी से भर जाता है। बारिश की बूंदें जब धरती से टकराती हैं, तो मिट्टी की सोंधी खुशबू और ठंडी हवा मन को एक अलग ही सुकून देती है। खासकर 80s और 90s के बच्चों के लिए यह मौसम कुछ खास मायने रखता है। उस समय की बारिशें सिर्फ पानी की बूंदें नहीं होती थीं, बल्कि वह एक खेल का न्यौता लेकर आती थीं, जिसमें कागज की कश्ती, मिट्टी के घरौंदे, और बेमतलब की भीगी मस्ती शामिल होती थी।

कागज़ की कश्ती



बारिश की पहली बूंद गिरते ही बच्चे छतों या आंगन में दौड़ पड़ते थे। हम सब अपनी-अपनी किताबों के आखिरी पन्ने फाड़कर कागज़ की कश्ती बनाते थे। वह कश्ती इतनी सादी होती थी, लेकिन उस छोटे से कागज के टुकड़े में हमारे सपने तैरते थे। बारिश के पानी से भरी गलियों में उन कश्तियों को छोड़ते हुए लगता था कि हम किसी समंदर में अपने जहाज को सफर पर भेज रहे हैं। वह छोटे-छोटे कश्ती के सफर हमारे दिल में बड़ी-बड़ी यादें छोड़ गए हैं।

मिट्टी के घरौंदे 


बारिश के बाद गीली मिट्टी मिलती थी, जो हमें घरौंदे बनाने के लिए प्रेरित करती थी। हम घंटों मिट्टी से खेलते थे और उसमें अपने सपनों के महल बनाते थे। वो मिट्टी से सने हाथ और कपड़े उस समय कोई परेशानी नहीं लगते थे, बल्कि वह तो हमारे खेल का हिस्सा होते थे। उन मिट्टी के घरौंदों में बस एक छोटे से चिराग की कमी होती थी, लेकिन हमारे मन का उजाला उन्हें जगमगाता था।

बेमतलब की मस्ती 
आज की तरह तब कोई मोबाइल या वीडियो गेम नहीं होते थे। बारिश में बाहर खेलना ही हमारी असली मस्ती होती थी। कभी-कभी बिना छतरी के बारिश में भीगना, दोस्तों के साथ कूदते हुए घर लौटना और फिर मम्मी से डांट खाना—यह सब यादें हैं जो दिल को आज भी हंसने पर मजबूर कर देती हैं। गर्म चाय और गरमा-गरम पकौड़े जैसे जैसे बारिश की बूँदें तेज़ होती थीं, हमारा जोश भी उतना ही बढ़ता था। 80s और 90s के बच्चे इन छोटी-छोटी खुशियों को जीते थे। कागज़ की कश्ती के साथ बहने वाले सपनों को आज भी हम अपने दिल के किसी कोने में संभाल कर रखते हैं। बारिश का यह मौसम न केवल धरती को ताजगी देता है, बल्कि हमें हमारे बचपन की यादों में भीगी एक खुशबू से सराबोर कर देता है।

निष्कर्ष
कागज़ की कश्ती और बारिश का वह दौर भले ही बीत गया हो, लेकिन उसकी यादें दिल के किसी कोने में हमेशा बसती हैं। जब भी बारिश होती है, आज भी वो बचपन लौट आता है और कागज़ की कश्ती से जुड़े हमारे सपनों को फिर से तैरता देखता हूं।

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