सर्दियों की ठंडी सुबहें और पुराने दिनों की गर्म यादें हमेशा दिल को सुकून देती हैं। 90 के दशक की सर्दियां कुछ अलग ही हुआ करती थीं। न मोबाइल का शोर था, न इंटरनेट की भाग-दौड़। बस एक सुकूनभरा समय था, जब रिश्ते और पल दोनों ही गहराई से महसूस किए जाते थे।
सुबह का आलस और रजाई का प्यार
सुबह उठने से पहले रजाई के अंदर दुबके रहने का मज़ा ही कुछ और था। स्कूल जाने के लिए मां की मीठी डांट, "उठ जा, नहीं तो देर हो जाएगी," और ठंडे पानी से मुंह धोने की हिम्मत जुटाना किसी चैलेंज से कम नहीं था।
मूंगफली और गुड़ की मिठास
सर्दियों में चौपालों पर मूंगफली और गुड़ का स्वाद हर गली में बसा होता था। सर्दियों की गुनगुनी धूप में बैठकर मूंगफली छीलना और दोस्तों के साथ ठिठोली करना, वो पल किसी भी आधुनिक मनोरंजन से बेहतर थे।
पतंगबाजी और खेतों की हरियाली
90 के दशक की सर्दियों में पतंगबाजी का खास आकर्षण था। "वो काटा!" की आवाज़ और आसमान में रंग-बिरंगी पतंगें देखकर हर दिल झूम उठता था। खेतों में सरसों के फूल और गेहूं की लहलहाती फसलें सर्दियों के दिनों को और भी खास बना देती थीं।
त्योहारों की रौनक
मकर संक्रांति, लोहड़ी, और बसंत पंचमी जैसे त्योहारों का माहौल हर घर में खुशी बिखेर देता था। घर की रसोई से गुड़-तिल की मिठास और गजक-पताशे की खुशबू सर्दियों को और यादगार बना देती थी।
अंतहीन कहानियां और बड़ों का साथ
रात में अलाव के पास बैठकर दादी-नानी की कहानियां सुनने का जो मज़ा था, वो आज के गैजेट्स नहीं दे सकते। वो किस्से-कहानियां हमें न सिर्फ मनोरंजन देती थीं, बल्कि जीवन की गहरी सीख भी सिखाती थीं।
नयी सर्दियां, पुरानी यादें
आज जब ठंड का मौसम आता है, तो उन पुराने दिनों की यादें दिल को गुदगुदा जाती हैं। न वो अलाव रहा, न वो कहानियां, लेकिन दिल के किसी कोने में 90 के दशक की सर्दियां आज भी गर्माहट भर देती हैं।
क्या आपके पास भी ऐसी कोई सर्दियों की याद है जो आपको 90 के दशक में वापस ले जाती है?
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